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तीन दिन बाढ़ में डूबा रहा बोरिदा, अब जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने की कर रहा जद्दोजहद

गजानंद निषाद, साल्हेओना बरमकेला। महानदी के तट पर बसा ग्राम बोरिदा में बाढ़ ने पिछले सालों के अपेक्षा इस बार खूब तबाही मचाई। बाढ़ का पानी ने चारों तरफ से गांव को डूबा कर फसल को भी बर्बाद कर दी। अब ग्रामीणों का जनजीवन पटरी पर फिर से लौटने मेंं लगा है और ग्रामीण अपने आशियाने को ठीकठाक कर खराब हो चुकी फसल की चिंता कर रहे है। सरिया नगर पंचायत से सात किलोमीटर दूर ग्राम बोरिदा है। गांव के किनारे से होकर किंकामणी नाला बहती है और उस पार ओडि़शा सीमा प्रारंभ हो जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि वर्ष 2003 और 2011 में भी महानदी में बाढ़ आई थी लेकिन इस बार का जलस्तर तेजी से बढ़ा व घटने का स्तर काफी धीमा रहा। ऐसे में गांव में 32 मकान ध्वस्त हो गए। 288 मकानों को आंशिक क्षति पहुंची। तीन दिन तक बाढ़ के पानी में डूबे रहने के बाद अब घर लौट चुके लोग मकानों को फिर से रहने लायक बनाने में जुट गए है। जिनका टूट चुका है मकान वे लोग परछी के एक कोने कोने पर तिरपाल वगैरह ढंक कर रह रहे हैं।

जनप्रतिनिधियों का गांवों में लगा था रेला: ग्रामीण बताते है कि बाढ़ के दौरान अधिकारियों का दल व जनप्रतिनिधियों का रेला लगा था और प्रभावितों को राहत कैम्प पर भेजने में लगे थे। किसी ने राहत सामग्री नहीं बांटी। हमने पूरा गांव व फसलों की स्थिति न केवल बताई बल्कि एक एक खेत में ले जाकर दिखाया भी है। अब जो करना है वहीं जाने…। सरकारी मदद के इंतजार किए बगैर ग्रामीण पटरी पर लौटने की जद्दोजहद शुरू कर दी है। फिलहाल प्रशासन की ओर से सर्वे टीम द्वारा घर घर जाकर मकानों, सामानों व पालतू जानवरों के बारे में जानकारी प्रपत्र में भरवाई जा रही है।

किसानों का फसल तबाह: गांव के किसानों ने बताया कि बोरिदा की कुल रकबा में से पचास फीसदी से अधिक रकबा बाढ़ से नष्ट हो गया है। आरंभिक सर्वेक्षण में भी यही जानकारी दी गई है। कृषकों की माने तो तीन दिन बस्ती में पानी भरा रहा। जबकि खेत खलिहान में एक सप्ताह तक पानी नहीं उतरा। इस वजह से धान के पौधे गल गए हैं। दोबारा फसल लगाने की गुजाइंश भी नहीं बची। कई किसान धान खरीदी में उनकी रकबा न कट जाए इस डर से सर्वे टीम को नुकसानी नहीं बता रहे है।

जानवरों के लिए चारा भी नहीं बचा: बाढ़ ने फसल के साथ-साथ जानवरों के लिए रखें पैरा गौठा को भी बहा ले गया। चारागाह भी डूबा हुआ था। खेतों के मेड़ की हरा चारा भी खराब हो गए है। मवेशी मालिक का कहना है कि इस गांव के लिए राहत कैम्प सरिया मंडी प्रागंण व लुकापारा स्कूल को बनाया गया था। इन कैम्पों पर मवेशियों के लिए कोई खास इंतजाम नहीं था। अब बाढ़ खत्म होने के बाद भी चारे की समस्या बनी हुई है। सर्वे टीम के पटवारी गुरुचरण साव से पूछने पर उन्होंने कहा कि ग्रामीणों ने उन्हें चारा समस्या के बारे में नहीं बताई है।

नहीं पहुंची मदद: पिछले सालों के बाढ़ आते ही प्रभावित क्षेत्रों में समाज सेवी संस्थाओं व जनप्रतिनिधियों के माध्यम से लोगों को बुनियादी चीजों का राहत पैकेज बांटी गई थी लेकिन इस बार ऐसी स्थिति नहीं देखी गई केवल दौरा कर हाल चाल जानने में लगे रहे। यहां तक कि राहत कैम्प के संचालन को लेकर जनपद अधिकारियों व राजस्व विभाग की आपसी तालमेल नहीं था।

वर्सन..
प्रारंभिक सर्वे में मकानों को भारी क्षति होना पाया है। 3 मांझी लोगों के नाव बह गए। 22 किसानों ने फसल खराब होने की जानकारी दी है। अभी सर्वे का काम चल रहा है ऐसे में आंकड़े बढ़ सकते है।
गुरुचरण साव, पटवारी

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