Tuesday, December 3, 2024
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Ebstein Anomaly : बहुत ही जटिल व दुर्लभ बीमारी, 2 लाख में से किसी एक को होता है, मेकाहारा के डाॅक्टरों ने सर्जरी कर बचाई जान

Mekahara Raipur News : डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर के हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में एब्सटिन एनामली (Ebstein Anomaly) की लगातार चौथी सफल सर्जरी कर 30 वर्षीय महिला मरीज की जान बचाई। इस बीमारी को चिकित्सीय भाषा में कॉम्प्लेक्स कंजेनाइटल हार्ट डिजीज कहा जाता है। ऑपरेशन के दौरान मरीज के हृदय में डैफोडिल नियो नामक उच्च कोटि का बोवाइन टिश्यू वाल्व लगाया गया। ऑपरेशन के बाद मरीज पूर्णतः स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है।

विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार, ऐसे मरीज लगभग 28 से 30 साल तक ही जिंदा रह पाते हैं। लगभग 13 प्रतिशत मरीज जन्म लेते ही मर जाते हैं। 10 साल की उम्र तक 18 प्रतिशत बच्चे मर जाते हैं एवं लगभग 25 से 30 साल तक लगभग सारे मरीज मर जाते हैं।

इस बीमारी का ऑपरेशन बहुत ही जटिल होता है एवं बहुत ही कम संस्थानों में होता है। मरीज के शरीर का ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल (SpO2) 70 से 75 प्रतिशत ही रहता था। मरीज को बार-बार चक्कर आता था । इस बीमारी को कॉम्पलेक्स कंजनाइटल हार्ट डिजीज (Complex congenital heart disease) कहा जाता है जिसमें बचपन में या पैदा होते ही मरीज का शरीर नीला पड़ना प्रारंभ हो जाता है।

क्या होता है एब्सटिन एनामली (Ebstein Anomaly) : यह एक जन्मजात हृदय रोग है। जब बच्चा मां के पेट के अंदर होता है, उस समय पहले 6 हफ्ते में बच्चे के दिल का विकास होता है। इसी विकास के चरण में बाधा आने पर बच्चे का हृदय असामान्य हो जाता है। इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइकस्पिड वाल्व ठीक से नहीं बन पाता और यह अपनी जगह न होकर दायें निलय की तरफ चले जाता है जिसके कारण दायां निलय ठीक से विकसित नहीं हो पाता जिसको एट्रियालाइजेशन का राइट वेन्ट्रीकल (Atrialization of right ventricle) कहा जाता है एवं साथ ही साथ हृदय के ऊपर वाले चेम्बर में छेद हो जाता है(ASD)।

इससे दायां निलय बहुत ही कमजोर हो जाता है एवं फेफड़े में पहुंचने वाले खून की मात्रा कम हो जाती है जिससे रक्त को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता जिससे शरीर नीला पड़ जाता है एवं ऑक्सीजन सैचुरेशन 70 से 80 के बीच या इससे भी कम रहता है। इसी कारण मरीज ज्यादा साल तक नहीं जी पाते। मरीज या तो अनियंत्रित धड़कन (Ventricular tachycardia ) या राइट वेन्ट्रीकुलर फेल्योर के कारण मर जाते हैं। गर्भावस्था के दौरान एंटीसाइकोटिक मेडिसिन लिथियम एवं बेंजोडाइजेपाइन नामक दवाई लेने से इस बीमारी वाले बच्चे पैदा होने का खतरा ज्यादा होता है।

हार्ट लंग मशीन की सहायता से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया एवं इस ऑपरेशन में उच्च कोटि का डैफोडिल नियो (dafodil neo) बोवाइन टिशु वाल्व लगाया गया। टिशु वाल्व का लाभ यह होता है कि मरीज को जीवन भर खून पतला करने की दवाई (WARF or ACITROM) नहीं खानी पड़ती।

भिलाई में रहने वाली 30 वर्षीय महिला जब प्रेगनेंट थी तब उसके हाथ पैर में सूजन एवं अत्यधिक सांस फूलने की शिकायत होने लगी। गर्भवती होने के कारण इसको आज से 5 महीना पहले स्त्रीरोग विभाग में भर्ती किया गया एवं वहां पर जांच में पता चला कि इसको एब्सटिन (Ebstein Anomaly) नामक दुर्लभ बीमारी है। फिर उन्होंने मरीज को हार्ट सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के पास ओपिनियन के लिए भेजा कि प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना है कि आगे बढ़ाना है।

चूंकि मरीज की स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए इस मरीज को सीजेरियन सेक्शन की सलाह दी गई। ऑपरेशन के तीन महीने बाद मरीज को एसीआई के हार्ट, चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया और ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद मरीज पूर्णतः स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है।