Ratan Tata Death : टाटा ग्रुप भारत का सबसे बड़ा उद्योग घराना है। टाटा ग्रुप (Tata Group Ki History) पर लोगों का अटूट विश्वास बना हुआ है। टाटा ग्रुप ने किचन में इस्तेमाल होने वाले नमक से लेकर आसमान में उड़ान भरने वाले हवाई जहाजों तक का सफर तय किया है।
टाटा ग्रुप (Tata Group Ki History) की स्थापना साल 1868 में जमशेदजी टाटा ने की थी। टाटा ग्रुप छह महाद्वीपों के 100 से ज्यादा देशों में अपनी छाप छोड़ी है। टाटा ग्रुप के इतिहास की बात करें तो ये ग्रुप करीब 150 साल पुराना है। इसकी शुरूआत सिर्फ और सिर्फ 21,000 रुपये से हुई थी जिसके बाद आज ये कारोबार 300 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। हालांकि, सफलता का इतना लंबा सफर बिलकुल भी आसान नहीं रहा।
बिजनेस के साथ तकनीकी शिक्षा को भी दिया महत्व
टाटा ग्रुप के गॉडफादर जमदेशदजी टाटा ने इस ग्रुप को और इस विशाल बिजनेस की नींव रखी थी। इनका जन्म गुजरात में हुआ था। इन्होंने अपनी मेहनत से उन्होंने भारत में औद्योगिक क्रांति ला दी थी। इन्हों सिर्फ बिजनेस को ही नहीं बल्कि तकनीकी शिक्षा को भी महत्व दिया था।
पिता के साथ बढ़े आगे
जमशेदजी टाटा का जन्म पारसी परिवार में हुआ था। उनका पुश्तैनी काम पुजारी का था। लेकिन उनके पिता नुसरवानजी टाटा ने बिजनेस करने का फैसला लिया। पारिवारिक परंपरा से हटकर जब वो आगे बढ़े तो इसका असर उनके बेटे जमशेदजी टाटा पर हुआ। सिर्फ 14 साल की उम्र में अपने पिता जी के साथ मुंबई पहुंचे और एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ाई की।
अंग्रेजों को दी कांटे की टक्कर
जब भारतीय अंग्रेजों के शासन के चलते परेशानियों का सामना कर रहे थे तब जमशेदजी बिजनेस में उतरे थे। शुरूआत में उन्हें परेशानियां और असफलताओं का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने बिल्कुल हार नहीं मानी। जिसके बाद उन्होंने महज 29 साल की उम्र में मात्र 21000 रुपये से साल 1868 में मुंबई में एलेक्जेंड्रा मिल स्थापित की। उनके इस फैसले से टाटा ग्रुप साम्राज्य की नींव रखी गई।
टाटा ग्रुप (Tata Group Ki History) की कमान कब संभाली रतन टाटा ने
रतन एन टाटा ने बुधवार यानी 9 अक्टूबर को अंतिम सांस ले ली है। बात करें रतन एन टाटा के योगदान की तो, रतन नवल टाटा ने टाटा ग्रुप की कमान साल 1991 से 2012 तक कमान संभाली। वे साल 1991 से 2012 तक टाटा कंपनी के चेयरमैन बने रहे थे।
जिसके बाद उन्होंने टाटा ग्रुप की कंपनी को सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाया। साल 1991 में जब रतन टाटा ने इसकी कमान संभाली थी तब टाटा ग्रुप का सालाना कारोबार 4 अरब डॉलर था। जिसके बाद उन्होंने टाटा ग्रुप को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने के बाद ही चेयरमैनशिप छोड़ी थी।
कैसे बढ़ाया कंपनी को आगे?
टीओआई की एक खबर के अनुसार, टाटा ने खराब प्रदर्शन वाले सेक्टर्स को बेचने और नए सेक्टर्स में कदम रखने की तरह कई सारे साहसी निर्णय लिए हैं। उन्होंने अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए कमिंस, एआईए और स्टारबक्स जैसी इंटरनेशनल दिग्गजों के साथ पार्टनरशिप की। इससे ग्रुप को ऑटोमोटिव इंजन, बीमा बेचना और कारगिल से कोच्चि तक कॉफी को पेश करने में सक्षम बनाया।
नेशनल के साथ इंटरनेशनल स्तर पर फैलाया बिजनेस
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने नेशनल लेवल पर तो ग्रोथ हासिल की ही। साथ ही इंटरनेशनल स्तर पर भी अपने कारोबार को बढ़ाया। उन्होंने कई कंपनियों पर कब्जा भी किया जिसमें कोरस स्टील, जगुआर और लैंड रोवर जैसी कंपनियां शामिल हैं।
कोरस स्टील एक ब्रिटिश कंपनी है जिसको टाटा स्टील ने अधिग्रहण कर लिया। उसके बाद ये दुनिया की सबसे बड़ी स्टील मैनुफैक्चर कंपनियों में से एक बन गई। वहीं बात करें जगुआर और लैंड रोवर की तो टाटा मोटर्स ने इन दोनों का अधिग्रहण कर लिया जिससे ये ऑटोमोबाइल उद्योग में विश्व में प्रमुख कंपनियों में से एक हो गई।
जिसके बाद रतन टाटा ने टाटा नैनो कार को लॉन्च किया जो दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में जानी जाती है। इस कार को बनाने का एक ही मोटिव था कि इसको मिडिल क्लास फैमिली भी अफोर्ड कर पाए। टाटा ग्लोबल बेवरेजेस का जन्म ब्रिटेन की टेटली टी और अमेरिका की ऐट ओ क्लॉक कॉफी का अधिग्रहण करने से हुआ।