Friday, September 20, 2024
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Bsp High Court : पुलिस भर्ती में भूतपूर्व सैनिकों को नहीं मिला आरक्षण का लाभ, कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

Bilaspur News : छत्तीसगढ़ में सरकारी नौकरी के लिए होने वाली सभी परीक्षाएं कानूनी दांव-पेंच में उलझ रही हैं। नियमों का सही ढंग से पालन न होने की वजह से आवेदक अदालत (Bsp High Court) का दरवाजा खटखटा रहे हैं और वहां से नियुक्तियों को अदालत के फैसले के अधीन किया जा रहा है। ताजा मामला छत्तीसगढ़ में सूबेदार, उपनिरीक्षक, उपनिरीक्षक (विशेष शाखा) एवं प्लाटून कमांडर की भर्ती परीक्षा से जुड़ा है। बिलासपुर हाईकोर्ट ने पुलिस भर्ती प्रक्रिया को याचिका के अंतिम फैसले के अधीन रखा है।

हाईकोर्ट के समक्ष भोलेश कुमार (भूतपूर्व सैनिक) ने अपने अधिवक्ता अनादि शर्मा के माध्यम से सूबेदार, उपनिरीक्षक, उपनिरीक्षक (विशेष शाखा) एवं प्लाटून कमांडर की भर्ती में आये मुख्य लिखित परीक्षा के परिणाम को रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी है। मामले की सुनवाई हाईकोर्ट (Bsp High Court) के जस्टिस पी सैम कोशी की एकल पीठ में हुई। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अनादि शर्मा द्वारा कोर्ट को बताया गया कि भूतपूर्व सैनिकों के लिए सूबेदार, उपनिरीक्षक, उपनिरीक्षक (विशेष शाखा), एवं प्लाटून कमांडर की भर्ती में 95 पद (कुल 951 पदों का 10 प्रतिशत पद) रिज़र्व रखा गया है।

जिसके संबंध में पुलिस मुख्यालय द्वारा मुख्य लिखित परीक्षा के परिणाम में नियमानुसार, रिजर्व रखे पदों के पांच गुना अभ्यर्थियों को और उन अभ्यर्थियों को जिनके अंक आख़िरी चयनित अभ्यर्थी के बराबर हों, को अगले चरण में बुलाने की प्रक्रिया है, लेकिन पीएचक्यू द्वारा जारी परिणाम में 475 अभ्यर्थियों की बजाय 319 को अगले चरण की शारीरिक दक्षता परीक्षा के लिए चयनित किया गया जो विधिपूर्वक नहीं है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा (Bsp High Court) कोर्ट को यह भी बताया गया की भूतपूर्व सैनिक का आरक्षण विज्ञापन के हिसाब से समस्तर (हॉरिजांटल) एवं प्रवर्गवार (कम्पार्टमेंट वाइज़) आरक्षण रखा जाना है और भूतपूर्व सैनिक के अपने ख़ुद में अलग-अलग प्रवर्ग होते हैं जिनका, 2021 के भर्ती संबंधित जारी नियमों में उल्लेख है। अधिवक्ता ने कोर्ट को इलाहाबाद हाईकोर्ट के डिवीज़न बेंच के एक केस का हवाला देते हुए बताया की भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पदों को जाति के आधार पर वितरित/विभाजित या आवंटित नहीं किया जा सकता है।

भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पदों को विभाजित करके उन्हें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जातियों और सामान्य उम्मीदवारों में आवंटित करना, इसलिए, अधिकारहीन है। सभी भूतपूर्व सैनिकों को, जो अपने आरक्षित कोटा के खिलाफ आवेदन करते हैं, एक ही वर्ग के व्यक्ति के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिए और उन सभी को उनके आरक्षित रिक्तियों के लिए मेरिट के आधार पर खास दृष्टिकोण से मान्यता दी जानी चाहिए, चाहे वे जाति/वर्ग में किसी से भी संबंधित हो।

लिखित परीक्षा में संशोधन की मांग : कोर्ट (Bsp High Court) को याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने यह भी बताया गया कि मुख्य लिखित परीक्षा के परिणाम छत्तीसगढ़ व्यापामं द्वारा नहीं जारी किए गए और पुलिस मुख्यालय ने ये परिणाम जारी किए और किसी भी अभ्यर्थी के अंकों को परिणाम में नहीं दर्शाया गया है जिससे याचिकाकर्ता को अपने अंक और आख़िरी चयनित अभ्यर्थी के अंक नहीं पता चलेंगे। ऐसे में लिखित परीक्षा में संशोधन की भी मांग रखी गई।

सरकार के अधिवक्ताओं ने दी ये दलील : वहीं सरकार के अधिवक्ताओं द्वारा कोर्ट में कथन दिया गया की भूतपूर्व सैनिक के कुल 153 पद ख़ाली रहेंगे। जिसके बाद उपरोक्त आधारों और कथन को मद्देनज़र रखते हुए,उच्च न्यायालय ने सूबेदार, उपनिरीक्षक, उपनिरीक्षक (विशेष शाखा), एवं प्लाटून कमांडर के पोस्ट पर होने वाली भर्ती को याचिका के निर्णय के अधीन रख दिया है।