राजनीति

इस साल CG-MP-राजस्थान समेत 10 राज्यों में होंगे चुनाव, जानें कहां-कैसे हैं ताजा राजनीतिक समीकरण

नई दिल्ली. सियासी नजरिए से भारत में इस साल काफी अहम होने वाला है। देश में इस साल कुल 10 राज्यों के चुनाव होने हैं। फरवरी और मार्च के बीच पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनाव होंगें। वहीं, अप्रैल-मई में दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होगी। साल के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना राज्य भी विधानसभा चुनाव का सामना करेंगे। इसी साल केंद्र शाषित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी इसी साल चुनाव हो सकते हैं। मौजूदा समय में मध्यप्रदेश, त्रिपुरा और कर्नाटक में भाजपा की सरकार है, जबकि मेघालय, नगालैंड और मिजोरम में भाजपा एनडीए के साथियों के साथ सरकार में है। कांग्रेस के पास केवल राजस्थान और छ्त्तीसगढ़ हैं। तेलंगाना में भारतीय राष्ट्र समिति (पूर्व नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति) की सरकार है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से जम्मू-कश्मीर में अभी तक चुनाव नहीं हुए हैं।

 

 

 

छ्त्तीसगढ़  : कांग्रेस ने 2018 में राज्य में 90 में से 68 सीटें जीतकर 15 साल बाद राज्य की सत्ता हासिल की थी। वहीं, रमन सिंह के नेतृत्व में उतरी भाजपा को केवल 15 सीटें हासिल हुई थीं। भूपेश बघेल को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। 2018 के बाद से भाजपा यहां हुए पांच उपचुनाव हार चुकी है। हाल ही में हुए भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव इसका ताजा उदाहरण है। इससे पहले दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही और खैरागढ़ में भी कांग्रेस को जीत मिली थी।

 

 

 

मध्यप्रदेश : मध्यप्रदेश में इस समय शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार है। 2018 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। 230 सीटों वाली विधानसभा में चुनाव के बाद 114 सीटें पाने वाली कांग्रेस ने निर्दलीय और बसपा व सपा के समर्थन से सरकार बनाई थी। इसके साथ ही 1998 के बाद पहली बार कांग्रेस यहां सत्ता में आई थी।  हालांकि, सवा साल बाद ही कांग्रेस में बगावत हो गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों समेत कुल 22 विधायक मार्च 2020 में भाजपा में चले जाने से कमलनाथ सरकार गिर गई। इसके बाद भाजपा फिर से सत्ता में आई और शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। इसके बाद कुल 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीतकर विधानसभा में एक बार फिर बहुमत हासिल कर लिया। राज्य में अगला विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में होगा। भाजपा के सामने जहां अपने प्रदर्शन को सुधारने की चुनौती होगी। वहीं, मुख्य विपक्षी कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर में सवार होकर एक बार फिर से सरकार में आने की कोशिश करेगी।

 राजस्थान : बीते तीन दशक से राजस्थान में हर पांच साल पर सत्ता बदल जाती है। 2018 के चुनाव में मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने पांच साल बाद सत्ता में वापसी की। अशोक गहलोत एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, अपनों की ही बगावत के कारण सरकार कभी भी स्थिर नहीं नजर आई। जुलाई और अगस्त 2020 में पायलट गुट के बागी होने के कारण हालात यहां तक तक आ गए कि अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार को अविश्वास मत का सामना करना पड़ा। बगावत के कारण पायलट समेत कई विधायकों को अपने पद खोने पड़े। अचानक हालात बदले और कांग्रेस आलाकमान की समझाइश के बाद पायलट गुट के तेवर ढीले हुए। इसके बाद सरकार ने ध्वनि मत के माध्यम से राजस्थान विधानसभा में विश्वास मत जीता।  इस साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस अबकी बार किसके चेहरे पर चुनाव लड़ेगी, यह अभी यक्ष प्रश्न है। इसके अलावा पार्टी के सामने सत्ता विरोधी लहर को पार करने की भी चुनौती होगी। वहीं, दूसरी ओर भाजपा यहां एक बार फिर वापसी की उम्मीद करेगी।

 

 त्रिपुरा : 2018 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। भाजपा ने यहां 25 साल से शासन कर रहे लेफ्ट को बेदखल किया था। बिप्लब देब राज्य मुख्यमंत्री बने। इसी साल मई में भाजपा ने देब की जह माणिक साह को राज्य की कमान सौंपी है। अब साह पर भाजपा को सत्ता में वापसी कराने की जिम्मेदारी होगी।  हालांकि, चुनाव एलान से ऐन पहले राज्य में सियासी उथलपुथल जारी है। भाजपा नेता हंगशा कुमार त्रिपुरा इस साल अगस्त में अपने 6,000 आदिवासी समर्थकों के साथ टिपरा मोथा में शामिल हो गए। वहीं, आदिवासी अधिकार पार्टी भाजपा विरोधी राजनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही कई नेता पार्टियां बदल रहे हैं। इन सब के बीच भाजपा चुनावी तैयारी के लिहाज से रथ यात्रा निकालने जा रही है।

 मेघालय : 2018 में राज्य में नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और भाजपा गठबंधन की सरकार बनी थी। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। हालांकि, बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई थी। चुनाव में अलग-अलग लडे़ एनपीपी-भाजपा ने गठबंधन किया। एनपीपी के कोनराड संगमा मुख्यमंत्री बने। यहां भी चुनाव से पहले राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। यहां तक की गठबंधन सरकार चला रही एनपीपी और भाजपा के बीच भी दरारें दिख रही हैं। हाल ही में दो विधायक एनपीपी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए।

 

 नगालैंड : 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) में दो टुकड़ों में बंट गई  थी। पार्टी के बड़े नेता और राज्य के मुख्यमंत्री रहे नेफ्यू रियो बागी गुट के साथ चले गए। बागियों ने नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) बनाई। चुनाव से पहले NPF ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। भाजपा और NDPP ने मिलकर चुनाव लड़ा। NDPP को 18 तो भाजपा को 12 सीटों पर जीत मिली। गठबंधन सत्ता में आया और नेफ्यू रियो मुख्यमंत्री बने। नेफ्यू रियो के सीएम बनने के बाद 27 सीट जीतने वाली NPF के ज्यादातर विधायक NDPP में शामिल हो गए। इससे NDPP विधायकों का आंकड़ा 42 पर पहुंच गया। वहीं, NPF के केवल चार विधायक बचे। बाद में NPF ने भी सत्ताधारी गठबंधन को समर्थन दे दिया। मौजूदा समय में राज्य विधानसभा के सभी 60 विधायक सत्तापक्ष में हैं।

कर्नाटक : 2018 विधानसभा चुनाव में 224 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा ने 104 सीटें जीतीं थी। सबसे बड़ा दल होने के बाद भी भाजपा सत्ता से दूर रह गई। जेडीएस और कांग्रेस ने चुनाव बाद गठबंधन करके सरकार बनाई। बाद में कांग्रेस और जेडीएस विधायकों की इस्तीफे के कारण कुमारस्वामी सरकार गिर गई। विधायकों के अपने पाले में आने के बाद बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार बनाई थी। येदियुरप्पा ने अपने चौथे कार्यकाल की दूसरी वर्षगांठ 26 जुलाई 2021 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 28 जुलाई 2021 को बसवराज बोम्मई ने उनकी जगह ली। राज्य में अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं। इससे पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही आंतरिक कलह से गुजर रही हैं। भाजपा पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा और सीएम बसवराज बोम्मई के बीच के मतभेदों को दूर करने में जुटी है। वहीं, कांग्रेस कर्नाटक अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को एकजुट करने में लगी हुई है।
मिजोरम : मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 40 में से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस सिर्फ 5 सीटें जीत सकी थी। भाजपा ने पहली बार राज्य में अपना खाता खोला था। इस बार भी भाजपा और एमएनएफ अभी से बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस पार्टी को एकजुट रखने के लिए संघर्ष कर रही है। एमएनएफ केंद्र में एनडीए और क्षेत्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनईडीए दोनों का हिस्सा है।

 तेलंगाना : 2018 विधानसभा चुनाव में, चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत तेलंगाना राष्ट्र समिति (पूर्व नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति) ने 119 में से 87 सीटें जीतकर शानदार जीत हासिल की। कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं। टीडीपी ने पिछली बार 15 के मुकाबले महज दो सीटें जीती थीं। बीजेपी को सिर्फ एक सीट मिली थी। भाजपा जिन नए राज्यों में पार्टी विस्तार के प्रयास में लगी है, उनमें तेलंगाना भी शामिल है। राज्य के कई बड़े नेता कांग्रेस, टीडीपी समेत अन्य पार्टियों से भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा की कोशिश 2023 का चुनाव टीआरस और कांग्रेस की जगह टीआरस और भाजपा के बीच करने की है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई भाजपा नेता यहां लगातार चुनावी दौरे कर रहे हैं।

 जम्मू-कश्मीर :अनुच्छेद-370 हटने के बाद राज्य विधानसभा के लिए नए सिरे से परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका है। चुनाव आयोग इसी साल राज्य में चुनाव करा सकता है। जम्मू-कश्मीर के बीजेपी प्रभारी तरुण चुग ने हाल ही में पार्टी सदस्यों से राज्य के लोगों तक पहुंचने का आह्वान किया। पार्टी ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी हैं। अगले तीन महीन में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे होने की खबरें भी हैं। विपक्ष भी कमर कस रहा है। 5 दिसंबर को, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख के रूप में फिर से चुना गया। गुपकार गठबंधन साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। वहीं, पूर्व कांग्रेसी गुलाम नबी आजाद की नई नवेली डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी भी इस चुनाव में अहम भूमिका निभा सकती है।

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