Friday, October 11, 2024
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कृषि विरोधी अध्यादेशों के खिलाफ छग के गांवों में केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ हुआ प्रदर्शन

रायपुर। केंद्र सरकार द्वारा जारी किसान विरोधी अध्यादेशों के खिलाफ और ग्रामीण जनता की आजीविका बचाने की मांग पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन के आव्हान पर सोमवार को पूरे प्रदेश के सैकड़ों गांवों में हजारों किसानों और आदिवासियों ने संसद सत्र के पहले दिन प्रदर्शन किया। 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए जिन्होंने 20 से ज्यादा जिलों में विरोध प्रदर्शन किया। इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं। आज ही दिल्ली में समन्वय समिति से जुड़े संगठन हजारों की उपस्थिति वाले एक विशाल धरना की भी अगुआई कर रहे हैं। छग किसान सभा के नेता संजय पराते ने आरोप लगाया कि इन कृषि विरोधी अध्यादेशों का असली मकसद न्यूनतम समार्तन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश का जनतांत्रिक विपक्ष और किसान और आदिवासी इन कानूनों का इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे खेती की लागत महंगी हो जाएगी, फसल के दाम गिर जाएंगे, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी बढ़ जाएगी और कार्पोरेटों का हमारी कृषि व्यवस्था पर कब्जा हो जाने से खाद्यान्न आत्मनिर्भरता भी खत्म जो जाएगी। यह किसानों और ग्रामीण गरीबों की बर्बादी का कानून है।

 

इन मुद्दों को लेकर किया प्रदर्शन: केंद्र सरकार से पर्यावरण आंकलन मसौदे को वापस लेने, कोरोना संकट के मद्देनजर ग्रामीण गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न और नगद राशि से मदद करने, मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, व्यावसायिक खनन के लिए प्रदेश के कोल ब्लॉकों की नीलामी और नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण रद्द करने, किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने और उन्हें बैंकिंग तथा साहूकारी कर्ज के जंजाल से मुक्त करने, आदिवासियों और स्थानीय समुदायों को जल-जंगल-जमीन का अधिकार देने के लिए पेसा कानून का क्रियान्वयन करने की भी मांग की गई।

राज्य सरकार के खिलाफ भी आवाज बुलंद की: राज्य की कांग्रेस सरकार से भी सभी किसानों को पर्याप्त मात्रा में यूरिया खाद उपलब्ध कराने, बोधघाट परियोजना को वापस लेने, हसदेव क्षेत्र में किसानों की जमीन अवैध तरीके से हड़पने वाले अडानी की पर्यावरण स्वीकृति रद्द करने और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने, किरंदुल की आलनार पहाड़ी को आरती स्पॉन्ज को न सौंपने, पंजीकृत किसानों के धान के रकबे में कटौती बंद करने, सभी बीपीएल परिवारों को केंद्र द्वारा आबंटित प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज वितरित करने, वनाधिकार दावों की पावती देने, हर प्रवासी मजदूर को अलग मनरेगा कार्ड देकर रोजगार देने और भू-राजस्व संहिता में कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव न करने की मांग की गई।


अधिकारियों को सौंपे ज्ञापन: किसान नेताओं ने कई स्थानों पर प्रशासन के अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंपे। स्थानीय स्तर पर आंदोलनकारी समुदायों को संबोधित भी किया है। अपने संबोधन में इन किसान नेताओं ने वन नेशन, वन एमएसपी की मांग करते हुए कहा कि मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के कारण देश आज गंभीर आर्थिक मंदी में फंस गया है। इस मंदी से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि आम जनता की जेब मे पैसे डालकर और मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध करवाकर उसक क्रय शक्ति बढ़ाई जाए ताकि बाजार में मांग पैदा हो। लेकिन इसके बजाए यह सरकार अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों में कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव करने पर तुली है। सरकार की इन किसान-आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ पूरे देश में संघर्ष तेज किया जाएगा।