एक्सक्लूसिव

Saraipali Vidhansabha : छग के इस विस सीट पर एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी के जीतने का ट्रेंड

Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले की सरायपाली विधानसभा सीट (Saraipali Vidhansabha) अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। राज्य के गठन के बाद चार बार हुए विधानसभा चुनाव में दो बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। मौजूदा समय में यहां कांग्रेस से किस्मत लाल नंद विधायक हैं।

वहीं बीजेपी ने यहां उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। भारतीय जनता पार्टी ने सरला कोसरिया पर दांव लगाया है। भाजपा यहां दूसरी बार महिला प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। इसके पहले 2008 में नीरा चौहान को उम्मीदवार बनाया था। जिन्हें कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. हर्षवर्धन भारद्वाज ने हराया था।

सरायपाली (Saraipali Vidhansabha) के सियासी समीकरण की बात की जाए तो इस सीट को लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। हालांकि छत्तीसगढ़ गठन के बाद इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच बराबरी का मुकाबला रहा है। यहां कांग्रेस तो कभी बीजेपी के प्रत्याशी को जीत मिलती रही है। इस विधानसभा सीट की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां से जीतने के बाद कोई भी विधायक दोबारा चुनकर नहीं आया।

सरायपाली विधानसभा (Saraipali Vidhansabha) का अधिकतर इलाका जंगल से ढका हुआ है। ओडि़शा सीमा से सटे होने और गरियाबंद-छुरा से होते हुए रायगढ़ तक यह इलाका नक्सलियों के लिए सेफ कॉरिडोर भी है। ये गांड़ा समुदाय बहुल माना जाता है। हालांकि क्षेत्र में अघरिया और कोलता समुदाय भी बड़ी तादाद में है।

जातिगत समीकरण : सरायपाली (Saraipali Vidhansabha) का जातीय समीकरण भी दिलचस्प है। यहां पर 24 फीसदी एसटी, 11 फीसदी एससी, 18 फीसदी अघरिया और 16 फीसदी वोटर कोलता समाज से हैं। इसके अलावा सामान्य के 2 फीसदी और अल्पसंख्यक वोटर 2 फीसदी हैं। सरायपाली के सियासी इतिहास की बात की जाए तो सीट पर अब तक 10 बार कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया है, जबकि बीजेपी केवल तीन बार ही कांग्रेस के इस गढ़ को ढहाने में कामयाब हो पाई है।

कांग्रेस के टिकट पर यहां राजपरिवार से जुड़े महेंद्र बहादुर और देवेंद्र बहादुर जीतते रहे हैं। लेकिन राज्य बनने के बाद 2003 के चुनाव में यहां बीजेपी के त्रिलोचन पटेल ने कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर को हरा कर कांग्रेस को झटका दिया। इसके बाद एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की जीत का ट्रेंड चला।

राजपरिवार का दखल हुआ कम : 2008 से पहले यह सीट सामान्य थी। जिस पर सरायपाली (Saraipali Vidhansabha) का महल सालों से इस इलाके की सियासी किस्मत लिखता रहा है। इस राजपरिवार के सदस्यों ने लंबे समय तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। हालांकि 2008 में परिसीमन के बाद जब से ये सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हुई है। तब से सरायपाली की सियासत पर इस महल का असर लगभग नहीं के बराबर हो गया है। जिस महल और राजपरिवार के दम पर कांग्रेस ने यहां वर्षों तक राज किया, अब वो भी इसके असर से बाहर निकल चुकी है। सरायपाली में कई नेता हैं जो सीट से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

नवीन जिले और रेल लाइन की मांग लंबित : सरायपाली विधानसभा सीट (Saraipali Vidhansabha) में सबसे बड़ा मुद्दा रेलवे लाइन और सरायपाली को जिला बनाने की है। लंबे समय से ये दोनों मांगें लंबित है। बागबाहरा से बरगढ़ को रेल लाइन से जोडऩे की बात 5 दशकों से चल रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही इस मुद्दे को समय-समय पर उठाया। केंद्र में जब कांग्रेस सरकार थी तब भाजपा ने मुख्यमंत्री, फिर सीएम के जरिए केंद्र सरकार तक पहुंचाया। 2012 में सर्वे के लिए बजट में भी शामिल किया गया, लेकिन इसके बाद कुछ नहीं हुआ। वर्तमान में प्रदेश में कांग्रेस और केंद्र में भाजपा की सरकार है। वहीं सरायपाली को जिले बनाने की मांग 1984 से हो रही है, जो अब तक लंबित है। ये दोनों मामले विस चुनाव में अहम मुद्दे साबित होंगे।

पिछले चार चुनाव के परिणाम

2018 विस चुनाव

किस्मत लाल नंद कांग्रेस 1,00,302

श्याम तांडी बीजेपी 48,014

2013 विस चुनाव

रामलाल चौहान बीजेपी 82,064

डॉ. हर्षवर्धन भारद्वाज कांग्रेस 53,232

2008 विस चुनाव

डॉ. हर्षवर्धन भारद्वाज कांग्रेस 64,456

नीरा चौहान बीजेपी 48,234

2003 विस चुनाव

त्रिलोचन पटेल बीजेपी 48,234

देवेंद्र बहादुर सिंह कांग्रेस 40,942

Live Share Market
 

जवाब जरूर दे 

इंडिया गठबंधन का पीएम दावेदार किसे बनाना चाहिए?

View Results

Loading ... Loading ...

Related Articles

Back to top button