Grafted Brinjal Farming : सक्ती जिले के विकासखंड मालखरौदा अंतर्गत ग्राम छोटे रबेली के किसान श्री राजू मधुकर ने परंपरागत धान की खेती से हटकर ग्राफ्टेड बैंगन खेती (Grafted Brinjal Farming) अपनाई। उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग से उन्होंने यह नवाचार किया, जिससे उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और उनका आर्थिक स्वरूप मजबूत हुआ।
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मधुकर ने बताया कि पहले 5 एकड़ भूमि में धान की खेती से लगभग 105 क्विंटल उत्पादन होता था। इसमें लगभग 1.10 लाख रुपये की लागत आती थी और विक्रय से लगभग 3.15 लाख रुपये की आय होती थी। इस प्रकार शुद्ध लाभ केवल 2.05 लाख रुपये रह जाता था। इस स्थिति में खेती से मिलने वाला आर्थिक लाभ सीमित था और खेती में जोखिम भी अधिक था।
इसके विपरीत, ग्राफ्टेड बैंगन खेती (Grafted Brinjal Farming) से उसी भूमि पर लगभग 600 क्विंटल उत्पादन हुआ। इसमें लगभग 3.50 लाख रुपये की लागत आई, जबकि विक्रय से 10.80 लाख रुपये की आय हुई। इस प्रकार शुद्ध लाभ लगभग 7.30 लाख रुपये रहा। इस सफलता ने न केवल श्री मधुकर के परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत की, बल्कि आसपास के किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी। कई अन्य किसान भी अब इस तकनीक को अपनाने की दिशा में गंभीर हुए हैं।
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उद्यानिकी विभाग का कहना है कि ग्राफ्टेड बैंगन खेती (Grafted Brinjal Farming) से उत्पादन और लाभ दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। विभाग योजना बना रहा है कि इस तकनीक को अधिक किसानों तक पहुंचाकर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आय और विकास को बढ़ावा दिया जाए। विभाग का मानना है कि सही मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग से किसान आधुनिक तकनीक को अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति में स्थायी सुधार ला सकते हैं।
राजू मधुकर की कहानी यह दर्शाती है कि आधुनिक तकनीक और ग्राफ्टेड बैंगन खेती (Grafted Brinjal Farming) का समन्वय ग्रामीण किसानों की आर्थिक स्थिति बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे खेती अधिक लाभकारी और सुरक्षित बनती है और किसान समुदाय की समृद्धि में योगदान मिलता है।


