रायपुर। घने जंगलों में समाया छत्तीसगढ़ अपने पर्यटन के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यहां कल-कल बहती नदियां, मनोरम पहाड़ी और नदियां प्राकृतिक खूबसूरती की मिसाल पेश करती हैं. वहीं अनेकों मंदिर के कारण धर्म और आस्था ने लोगों को छत्तीसगढ़ से जोड़ रखा है. यहां विश्व प्रसिद्ध ‘एशिया का नियाग्रा’ है, जो पर्यटकों को तो खूब भाता है साथ ही किसानों के लिए जीवनदायक भी है. यहां भगवान राम के पद चिन्ह है तो लव-कुश की जन्म स्थली भी है. यहां के अबूझमाड़ जंगल ने बस्तर को पहचान दिलाई है, तो आदिवासियों ने बस्तर की संस्कृति को जिंदा रखा है. राष्ट्रीय पर्यटन दिवस पर हम आपको छत्तीसगढ़ के इन्हीं पर्यटन स्थलों से रूबरू करा रहे हैं.
जंगल सफारी – जंगल सफारी रायपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित है। जंगल सफारी के 800 एकड़ क्षेत्र में कई स्वदेशी पौधों की प्रजातियां भी वनस्पति को जोड़ती हैं, जो जानवरों के लिए प्राकृतिक आवास की तरह वातावरण बनाते हैं। इस 800 एकड़ में 130 एकड़ का ‘खांडवा जलाशय’ नामक जल निकाय है, जो कई प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है। चार सफारी अर्थात शाकाहारी, भालू, बाघ और शेर की सफारी बनाई गई है। नंदनवन के ज्यादातर वन्यप्राणियों को जंगल सफारी में शिफ्ट किया गया है। यहां शाकाहारी वन्यप्राणी सफ़ारी – क्षेत्र 30 हेक्टेयर,भालू सफारी – क्षेत्र 20 हेक्टेयर, टाइगर सफारी – क्षेत्र 20 हेक्टेयर, शेर सफारी – क्षेत्र 20 हेक्टेयर में बनाया गया है।
चंपारण – राजधानी रायपुर स्थित चंपारण को चंपाझर के नाम से भी जाना जाता है. यह वल्लभ संप्रदाय के सुधारक और संस्थापक संत वल्लभाचार्य का जन्म स्थान है. संत वल्लभाचार्य के सम्मान में यहां एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया गया है. वहीं चंपकेश्वर महादेव का मंदिर यहां का विशेष आकर्षण है.
मैनपाट- सरगुजा के अंबिकापुर में स्थित ये सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है. हरी-भरी वादियों और सुंदर दृश्यों से भरा मैनपाट घूमने के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है. यहां सालभर ठंड का मौसम होता है इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है. कोहरे से ढकी वादियां बरबस ही मन मोह लेती है और सुकून का अनुभव कराती हैं. मैनपाट को ‘मिनी तिब्बत’ के नाम से भी जाना जाता है. 1962 में यहां तिब्बतियों को शरणार्थियों के रूप में बसाया गया था.
अचानकमार टाइगर रिजर्व- बिलासपुर जिले में बसा अचानकमार, मैकल पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है. कहा जाता है कि यहां जाने का सबसे अच्छा वक्त नवंबर से जून तक होता है. साल 1975 में इस अभयारण की स्थापना हुई और साल 2009 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया. बंगाल टाइगर, तेंदुआ, चीतल, हिरण और नील गाय के साथ ही कई जानवरों की प्रजातियां देखने को मिलेंगी.
गंगरेल बांध- धमतरी जिले से 15 किलोमीटर दूर स्थित इस बांध को रविशंकर जलाशय के नाम से भी जाना जाता है. इस बांध में 14 गेट हैं. बांध की असली सुंदरता तो बारिश के मौसम में ही देखने मिलती है. यहां माता अंगारमोती का मंदिर भी है, जहां माना जाता है कि भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यहां पर हजारों सैलानी बांध घूमने और माता के दर्शन को आते हैं. यहां वाटर स्पोर्ट़स के तहत कई बोट चलाए जा रहे.
चित्रकोट- बस्तर की पहचान कहे जाने वाले चित्रकोट को भारत का नियाग्रा कहा जाता है. बस्तर की जीवन रेखा कहे जाने वाली इंद्रावती नदी में बसे इस खूबसूरत जलप्रपात को देखने देश-विदेश से रोजाना हजारों की संख्या में लोग आते हैं. 95 फीट ऊंचे इस जलप्रपात का सुंदर नजारा देखने के लिए जुलाई से अक्टूबर तक का महीना सबसे सटीक होता है.
राजिम- महानदी, पैरी और सोंढुर नदी का संगम हो होने की वजह से यह जगह छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है. यहां होने वाले कुंभ मेले से लोगों की अपार आस्थाएं जुड़ी हुई हैं और राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है. यहां के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं. संगम के बीच में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर भी है.
सिरपुर- महासमुंद जिले में बसा सिरपुर पुरातात्विक अवशेषों से समृद्ध है. यहां के प्रसिद्द लक्ष्मणेश्वर मंदिर और गंधेश्वर मंदिर को देखने विदेशों से भी लोग आते हैं. इस ऐतिहासिक मंदिर के चारों तरफ आपको पुराने शिलालेख, भगवान की मुर्तियां और खुदाई से निकाले गए कई प्राचिन अवशेष देखने को मिलेंगे.
अंबिकापुर- सरगुजावासियों की आराध्य देवी महामाया की महिमा अपरंपार है, यहां आप अपनी मनोकामना लेकर जा सकते हैं. बिलासपुर की मां महामाया मंदिर के दर्शन कर भी आप नए साल की शुरुआत कर सकते हैं. दंतेवाड़ा के मां दंतेश्वरी मंदिर, धमतरी की बिलाईमाता मंदिर, राजनांदगांव के मां बम्लेश्वरी मंदिर, महासमुंद के मां चंडीदेवी मंदिर पहुंचकर नए साल की शुरुआत की जा सकती है.
भोरमदेव- भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है. यह मंदिर कबीरधाम जिले में स्थित है.पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा, नागर शैली में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. 7वी शताब्दी से 11वी शताब्दी में बने इस मंदिर को नागवंश के राजा रामचंद्र ने बनवाया था. इस पुरात्तविक धरोहर को देखने हर रोज हजारों की संख्या में यहां पर्यटक पहुंचते हैं.