जगदीश पटेल/ रायपुर। रायगढ़ जिले के खरसिया विधानसभा सीट (Kharsia Vidhansabha) कांग्रेस का सबसे मजबूत किला है। आजादी के बाद से ही सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट पर पिछले 30 सालों से नंदेली हाउस का कब्जा है। कांग्रेस के कद्दावर नेता नंद कुमार पटेल 22 साल तक लगातार विधायक रहे। नक्सल हिंसा में शहीद होने के बाद उनके छोटे बेटे उमेश पटेल राजनीति में आए। 2013 का चुनाव जीते, फिर 2018 में कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में आए पड़ोसी गांव के ही ओपी चौधरी को भी हराया।
इस सीट पर जशपुर के राजा स्व दिलीप सिंह जूदेव, और भाजपा के पितृपुरूष माने जाने वाले स्व लखीराम अग्रवाल जैसे दिग्गज इस सीट (Kharsia Vidhansabha) पर चुनाव हार चुके हैंं। पिछले विधानसभा की तरह इस बार भी यहां मुकाबला कांटे की होने की पूरी संभावना है। हालांकि चर्चा यह भी है कि आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी इस बार खरसिया से विधानसभा चुनाव नहीं लडऩा चाहते। सूत्रों की मानें तो वे वे चंद्रपुर से चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं, लेकिन इस सीट पर जशपुर राजघराने की बहू संयोगिता सिंह जूदेव भी चुनाव लडऩे के लिए पूरी ताकत झोंक रहे।
लक्ष्मी पटेल ने बनाई जीत की हैट्रिक : छत्तीसगढ़ के सबसे हॉट सीट माने जाने वाले खरसिया विधानसभा (Kharsia Vidhansabha) पर हमेशा से कांग्रेस का दबदबा रहा। भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी, मगर कामयाबी कभी नहीं मिली। बता दें कि 1977 में खरसिया विधानसभा का गठन हुआ। जनता पार्टी से डॉ शत्रुघ्न पटेल मैदान पर थे तो कांग्रेस से लक्ष्मी पटेल चुनाव लड़े और जीत गए। 1980 में भाजपा ने वेदराम राठिया को प्रत्याशी बनाया, जबकि पार्टी ने दोबारा लक्ष्मी पटेल पर ही भरोसा जताया। पार्टी के भरोसे पर लक्ष्मी पटेल खरा उतरे और विजयी हुए। वहीं 1985 में लक्ष्मी पटेल के खिलाफ भाजपा ने डॉ. सियाराम को उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे भी हार गए।
अर्जुन सिंह के लिए दिया इस्तीफा : पंजाब के राज्यपाल रह चुके अर्जुन सिंह को राजीव गांधी की पसंद पर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना था। अर्जुन सिंह के उपचुनाव के लिए कांग्रेस को सबसे सुरक्षित सीट की तलाश थी, जो आकर खरसिया (Kharsia Vidhansabha) में पूरी हुई। ऐसे में खरसिया विधायक लक्ष्मी पटेल को इस्तीफा दिलाकर सीट खाली कराई गई और 1988 में ऐतिहासिक उपचुनाव हुआ। अर्जुन सिंह के खिलाफ बीजेपी जशपुर राजा स्व दिलीप सिंह जूदेव को प्रत्याशी बनाया, लेकिन अर्जुन सिंह ने उपचुनाव में जीत हासिल कर विपक्ष के सपनों पर पानी फेर दिया। अब विपक्ष पार्टी अभी नहीं तो कभी नहीं के मूड में थे, पर आजादी के बाद अविभाजित मध्य प्रदेश से लेकर आज तक क्षेत्र में कांग्रेस के अलावा किसी भी पार्टी का परचम नहीं लहराया जा सका है।
अघरिया बहुल क्षेत्र : खरसिया विधानसभा क्षेत्र (Kharsia Vidhansabha) अघरिया (पटेल) और साहू बहुल है। मौजूदा विधायक उमेश और पिछले साल के भाजपा प्रत्याशी चौधरी, दोनों ही अघरिया समुदाय से हैं। यहां अघरिया व कोलता समाज के लोगों की संख्या 20 फीसदी से ज्यादा है। साहू समाज भी इतना ही है। पिछले चार चुनाव से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अघरिया समुदाय के व्यक्ति को ही उम्मीदवार बनाती रही है, लेकिन समीकरण हमेशा कांग्रेस के पक्ष में रहा।
कांग्रेसी जीत का अंतर ज्यादा : इस सीट (Kharsia Vidhansabha) पर कांग्रेस और भाजपा के बीच पिछले सात चुनाव में वोटों का अंतर 18 से 28 फीसदी तक रहा है। केवल 1990 में नंदकुमार पटेल भाजपा प्रत्याशी से 3893 वोट से जीते थे लेकिन इसके बाद उनकी लीड हर चुनाव में दोगुनी होती चली गई। 2013 विधानसभा चुनाव में भी उमेश 39 हजार वोटों से जीते थे। हालांकि पिछला चुनाव दिलचस्प हुआ था। कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी को जीताने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई। इसके बाद भी कामयाब नहीं हुए। हालांकि हार-जीत का फासला कम जरूर हुआ और उमेश पटेल 16 हजार 967 वोटों से जीत गए।