Supreme Court News : उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट का कहना है कि राज्यों में उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) की नियुक्ति संविधान के खिलाफ नहीं है। यह केवल एक पद है, जो वरिष्ठ नेताओं को दिया जाता है। इसके साथ ही इस ओहदे पर नियुक्त हुए व्यक्ति को अलग से कोई फायदा भी नहीं मिलता है।
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, सरकार में पार्टियों के गठबंधन या अन्य वरिष्ठ नेताओं को अधिक महत्व देने के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। बेंच ने याचिका को यह हुए खारिज किया कि उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) की नियुक्ति को किसी भी तरह से असंवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता।
पब्लिक पॉलिटिकल पार्टी द्वारा लगाई गई इस याचिका में दावा किया गया था कि भारतीय संविधान में उपमुख्यमंत्री पद जैसे किसी पद का उल्लेख नहीं है। यह संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है। इसके अलावा याचिका में यह भी दावा किया गया था कि उपमुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री की सहायता के लिए नियुक्त किया जाता है।
वह मुख्यमंत्री के बराबर होता है और उसे उन्हीं के समान वेतन और सुविधाएं भी मिलती हैं। याचिका में यह भी कहा गया था कि उपमुख्यमंत्री की नियु्क्ति से जनता का कुछ लेना-देना नहीं होता है। ऐसी नियुक्ति से लोगों के सामने गलत उदाहरण पेश होता है।
बता दें कि वर्तमान में देश के 14 राज्यों में 26 उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 5 आंध्र प्रदेश में हैं। आंध्र प्रदेश के अलावा यूपी, एमपी, नागालैंड में, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, मेघालय और महाराष्ट्र में 2-2 उपमुख्यमंत्री हैं। वहीं अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में 1-1 उपमुख्यमंत्री हैं।