Saturday, November 9, 2024
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Hornbill Bird : तीन महीने घोंसले में रहती है कैद, नर नहीं लौटे तो मर जाता है पूरा परिवार, अब छत्तीसगढ़ में यहां इस दुर्लभ पक्षी की सुनी जा रही चहचहाट

रायपुर। छत्तीसगढ़ के उदंती सीतानदी में दुर्लभ पक्षी हॉर्नबिल की इन दिनों खूब चहचहाट सुनी जा रही है। इस  पक्षी की भी गजब की कहानी है। जैसे इंसान अपने लिए घर खोजते हैं, वैसे ही हॉर्नबिल पक्षी पेड़ की डालियों में खोदकर में अपना घोंसला बनाते हैं। मादा हॉर्नबिल बच्चों को पालने के लिए करीब 3 महीन के लिए खुद को घोंसले में कैद कर लेती है। कैद के दौरान एक खुला छेद रहता है ताकि उसे सांस और खाना मिल सके। नर हॉर्नबिल चोंच से खाना खिलाता है। अगर नर न लौटे तो मादा बच्चों के साथ ही घोंसले में मर जाती है। 

 

 

 

जानकारी के मुताबिक, हॉर्नबिल पक्षी भारत के कई राज्यों (केरल, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश) में पाए जाते हैं.  ये पक्षी IUCN Red List का हिस्सा है ये पक्षी और ये 50 साल तक जीवित रह सकता है. हॉर्नबिल पक्षी आमतौर पर ताउम्र एक ही साथी के साथ रहते हैं. इस पक्षी की खासियत है कि जैसे इंसान अपने लिए घर साथ में खोजते हैं, वैसे ही ये पार्टनर के साथ ही घोंसला बनाते हैं. घोंसला मिलने के बाद, मादा हॉर्नबिल बच्चों को पालने के लिए खुद को 3-4 महीनों के लिए घोंसले में कैद कर लेती है. कैद के दौरान एक खुला छेद रहता है ताकि उसे सांस और खाना मिल सके. नर हॉर्नबिल उसे अपनी चोंच से खाना खिलाता है. अंडों से बच्चे निकलने के बाद नर को और ज़्यादा खाना लाने की ज़रूरत पड़ती है. वो दिन में कई बार खाना ढूंढने जाता है. अगर पिता घर नहीं लौटता है तो पूरे परिवार की मौत हो जाती है. ये वाकई में बहुत ही रोचक कहानी है.

 

 

गरियाबंद में सुनी जा रही चहचहाट : गरियाबंद के उदंती सीतानदी अभयारण्य के ऊंची पहाड़ी वाले इलाका कुल्हाड़ीघाट, आमामोरा व ओढ़ में हार्नबिल की चहचहाट खूब सुनाई दे रही है। उदंती सीता नदी अभयारण्य के उपनिदेशक वरुण जैन ने बताया कि हार्नबिल का स्थानीय नाम धनेश व वैज्ञानिक नाम बूसेरोस बिकोर्निस है। इसका पूरा नाम मालाबार पिएड हार्नबिल है। यह एशिया, अफ्रीका, मलेशिया के अलावा भारत के पश्चिमी घाट यानी महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में पाया जाता है। इसकी मौजूदगी छत्तीसगढ़ के बस्तर में कुछ मात्रा में है, पर इस अभयारण्य में कूल्हाडीघाट, अमामोरा ओढ़ की पहाड़ी में हजारों की संख्या में मौजूद है। अभयारण्य के इस इलाके की जलवायु व जैव विविधता पश्चिमी घाटियों जैसे है। इसी खासियत के वजह से इनकी उपस्थिति ज्यादा है। जैन ने बताया कि अभयारण्य में उड़न गिलहरी, बड़ी गिलहरी भी पाई जाती है। पाए जाने वाले पक्षियों की सामान्य जानकारी आम लोगों तक पहुंचाने एक फील्ड गाइड किताब, द बर्ड्स आफ यूएसटीआर के नाम से जल्द प्रकाशित किया जा रहा है। इस किताब के कवर पेज पर हार्नेबिल की तस्वीर को स्थान दिया गया है।Hornbill पक्षी की अनोखी कहानी, ज़िंदगी भर साथ रहते हैं, नर के न आने पर पूरा परिवार मर जाता है

 

दूर-दूर से देखने पहुंच रहे पक्षी प्रेमी : ओढ़ व आमामोरा इलाके में 4 ट्रैकरों की नियुक्ति अभयारण्य प्रशासन ने किया है। जो इनके दिनचर्या व व्यवहार पर नजर बनाए हुए हैं। ट्रैकरों ने बताया कि मादा घोंसले में एक या दो अंडे देती है। करीब 38 दिन बाद अंडे से चूजे निकलते हैं। बच्चे को उड़ने लायक बनने में तीन माह का समय लग जाता है। तब तक नर घोंसले में भोजन पहुंचाता है। पक्षी के इसी प्रेम कहानी के कारण पक्षी प्रेमी फोटोग्राफर इसे देखने दूर-दूर से पहुंच रहे हैं।