रायपुर। बारिश करने के लिए यज्ञ और हवन का होना तो आम बात है, लेकिन इंद्र देवता को खुश करने के लिए मेंढकों की शादी सुनकर आप भी चौंक जाएंगे। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में कुछ ऐसा ही हुआ। यहां इंद्र देव को खुश करने के लिए ग्रामीणों ने रीति-रिवाज के साथ दो मेंढकों की शादी कराई। दरअसल, पिछले दो दिनों को छोड़ दे तो पूरे छत्तीसगढ़ में बरसात नहीं होने से किसान परेशान हैं। ऐसा ही हाल रायगढ़ जिले के लैलूंगा ब्लॉक का भी है। ग्रामीणों का मानना है कि इंद्र देव रूठे हुए हैं, इसी वजह से उनके क्षेत्र में बारिश नहीं हो रही है। इंद्र देव को मनाने के लिए ग्रामीणों ने अनोखे अंदाज में दो मेंढ़कों की शादी कराई।
रायगढ़ जिले के लैलूंगा ब्लॉक अंतर्गत सोनाजोरी गांव के सैकड़ों लोग दूल्हे मेंढक राना टिग्रिना की बारात लेकर बेसकीमुड़ा पहुंचे। दोपहर को बैगाओं की उपस्थिति में पंडितों ने वैदिक रीति रिवाज के साथ दुल्हन रानी जाननी बेंग से राजा की शादी कराई, शाम को मेंढकी विदा हुई। इस शादी में 12 गांव के 3000 से अधिक लोग शामिल हुए। मिट्टी के बर्तन में भरे पानी में तैरते मेंढक और मेंढकी के फेरे कराए गए। दूल्हा-दुल्हन फुदककर भाग न जाएं इसलिए उनकी निगरानी की जा रही थी।
बेसकीमुड़ा में बारात के पहुंचने से पहले मेंढकी जाननी बेंग को हल्दी लगाई गई। घरातियों ने कन्यादान दिया, इससे इकट्ठा चार हजार रुपए भी मेंढकी को विदाई के वक्त दे दिए गए। गृहस्थी शुरू करने बर्तन, श्रृंगार सामग्री और कपड़े दिए। शाम को विदाई के मुहूर्त पर जाननी अपने पति राजा टिग्रिना के साथ ससुराल गई। शादी के लिए दोनों गांव के लोगों ने चंदा देकर फंड इकट्ठा किया।
शादी के कार्ड छपवाए गए, घर-घर न्योता दिया गया। मंडपाच्छादन, पाणिग्रहण, प्रीतिभोज और कन्या (मेंढकी) विदाई का मुहूर्त तय हुआ। सोनाजोरी और आसपास के गांव के लगभग 700 लोग चार किलोमीटर दूर नाचते-गाते बारात लेकर बेसकीमुड़ा पहुंचे। डीजे पर बाराती झूमते दिखे। मेंढक की एक प्रजाति का अंग्रेजी नाम राना टिग्रिना है। कार्ड में दूल्हे का नाम राजा टिग्रिना रखा गया। बेसकीमुड़ा में छातासरई, होरोगुड़ा, भुइंयापानी, मुगडेगा, ढोरोबीजा, चिरईखार, करवारजोर और सियारधार गांव के 2000 शामिल हुए।
1978 में बेसकीमुडा से सोनाजोरी गई थी बारात -बेसकीमुड़ा के देवाधि प्रसाद बेहरा ने बताया कि 1978 में सूखे की स्थिति के कारण आदिवासी मान्यता और परंपरा के मुताबिक मेंढक-मेंढकी का ब्याह कराया गया था। बारात बेसकीमुड़ा से सोनाजोरी गई थी। इसके बाद खूब बारिश हुई और सूखा दूर हुआ। इस बार गांव वालों ने तय किया कि सोनाजोरी का दूल्हा बारात लेकर बेसकीमुड़ा आएगा। भुइयांपानी के संतोष पंडा और जनार्दन पंडा ने वैवाहिक रस्म पूरी कराई। मिट्टी के बर्तन में भरे पानी में तैरते मेंढक और मेंढकी के फेरे कराए गए। दूल्हा-दुल्हन फुदककर भाग न जाएं इसलिए उनकी निगरानी की जा रही थी।