Friday, November 22, 2024
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वर्ल्ड कप खिलाड़ी: जिस खिलाड़ी ने राज्य का नाम खेल में रौशन किया और विश्वकप का प्रतिनिधित्व किया आज वहीं बदहाली की जिंदगी जी रहा है

रायपुर। जब वक्त खराब चलता है तो ना किस्मत साथ देती है ना ही सरकारें। जिस खिलाड़ी ने राज्य का नाम खेल में रौशन किया और विश्वकप का प्रतिनिधित्व किया आज वहीं बदहाली की जिंदगी जी रहा है। प्रदेश के विख्यात हॉकी खिलाड़ी विसेंट लकड़ा को किसी तरह की मदद नहीं मिल रही, खिलाड़ियों ने मदद की हाथ बढ़ाने की अपील खेल संघ और समाज सेवियों से की है। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सुदूर वनाचंल क्षेत्र सिथरा गांव के रहने वाले विसेंट लकड़ा प्रदेश के हॉकी खिलाड़ियों में बड़ा नाम है। हॉलेण्ड, पाकिस्तान, इंग्लैड जैसे देशों को हॉकी में धूल चटाया और 1978 में विश्वकम हॉकी का प्रतिनिधित्व किया मगर गुमनामी के जिंदगी तो जिया ही अब उम्र के इस पड़ाव में किसी के मदद के हाथ नहीं बढ़ रहा। इतने बड़े खिलाड़ी के लिए दुर्भाग्य की बात है कि वर्तमान में पैरालाइज हो गए हैं। इसके बाद भी उन्हें शासन प्रशासन से किसी तरह का कोई मदद नहीं मिल रहा। इस खिलाड़ी को सरकारी नौकरी तो दूर किसी तरह की सरकारी मदद तक नसीब नहीं हुआ। वहीं राज्य शासन तो दूर रायगढ़ जिला प्रशासन ने भी कुछ नहीं किया।

सेंटर फारवर्ड खिलाड़ी के रूप में इंडियन टीम में भाग लिया: 1978 के अर्जेंटीना में हुए चौथे वर्ल्ड कप में बतौर सेंटर फारवर्ड खिलाड़ी के रूप में इंडियन टीम में भाग लिया था। खिलाड़ियों के बेहतरीन प्रदर्शन के कारण टीम सेमीफाइनल तक पहुंची थी। लेकिन इंग्लैंड के साथ हुए क्वार्टर फाइनल मैच में फारवर्ड पोजिशन के दोनों खिलाड़ी घायल हो गए, और टीम कमजोर पड़ गई। लिहाजा टीम जर्मनी से सेमीफाइनल मैच हार गई। विसेंट लकड़ा ने अजीत पॉल, अशोक कुमार ध्यानचंद,  एस डुंगडुंग और पंजाब के रिटायर्ट कर्नल बलबीर सिंह जैसे कई बेहतरीन खिलाड़ियों के साथ भारत के लिए प्रतिनिधित्व किया था जो नए खिलाड़ियों के लिए किसी आर्दश से कम नहीं है।

कई इंटरनेशनल मैच खेले: अपने कैरियर के दौरान उन्होंने सिंगापुर, मलेशिया, पाकिस्तान जैसे कई देशों में इंटरनेशनल मैच खेले। साथ ही मुंबई में अपने दौर के आगा-खां चैंपियन ट्राफी भी दिलाई। लेकिन वर्ल्ड-कप में घुटने पर लगी चोट के कारण वे अधिक समय तक नहीं खेल सके। लेकिन खेल छोड़ने के कुछ समय तक जालंधर एकेडमी से जुड़ रहे।

ऐसे बनी इंडियन टीम में जगह: 1974 में उन्हें तेहरान के एशियन ओलंपिक में मौका नहीं मिला, जिसके बाद उनके गुरु बलबीर सिंह ने हौसला बढ़ाते करते हुए कहा कि अभी तो शुरुआत है, बहुत से मौके मिलेंगे, जिसके बाद उन्होंने चार साल निरंतर अभ्यास की और अपनी जगह चौथे वर्ल्ड-कप में महत्वपूर्ण पोजिशन के लिए बनाई।