Eco Friendly Plates : सरई पत्तों से दोना-पत्तल बनाकर महिलाओं ने दी प्लास्टिक को मात, बदल रही किस्मत

By admin
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Eco Friendly Plates

Women Empowerment : छोटे कस्बे अक्सर बड़े बदलाव की जन्मभूमि बन जाते हैं। बलरामपुर जिले का नगर पंचायत कुसमी इसी का उदाहरण है, जहां साधारण महिलाएं (Eco Friendly Plates) अब आत्मनिर्भरता की मिसाल बन रही हैं। सरई (साल) के हरे पत्तों से बनाए गए दोना-पत्तल (Eco Friendly Plates) न केवल उनकी आजीविका का साधन बन गए हैं, बल्कि पूरे नगर को प्लास्टिक मुक्त करने की दिशा में भी बड़ा कदम है।

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पर्यावरण संरक्षण और परंपरा का संगम

पहले पूजा पंडालों और भंडारों में प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग होता था, जिससे कचरे का ढेर लग जाता था। इस बार त्योहारों में महिला समूहों द्वारा बनाए गए पत्तों के दोना-पत्तल (Eco Friendly Products) का प्रयोग किया जा रहा है। आयोजकों से लेकर श्रद्धालुओं तक, सभी ने इस पहल की सराहना की। इससे पूजा कार्य भी अधिक पवित्र माना जा रहा है और पर्यावरण (Eco Friendly Plates) को भी राहत मिल रही है।

महिलाओं की प्रेरक यात्रा

कुसमी के चंचल, रोशनी और चांदनी महिला स्वयं सहायता समूह की 25 महिलाओं ने बिना किसी बड़े निवेश के पत्तों से (Eco Friendly Plates)दोना-पत्तल  (Sustainable Livelihood) बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे बाजार में इनकी मांग बढ़ने लगी। होटल, दुकानें और धार्मिक आयोजन अब इन्हीं पत्तलों का इस्तेमाल कर रहे हैं। महिलाएं बताती हैं कि पहले वे घर तक सीमित थीं, लेकिन अब उनकी आमदनी रोजाना 200 से 300 रुपये तक पहुंच गई है। इस काम से उन्हें आर्थिक सहारा तो मिला ही है, साथ ही शहर को प्लास्टिक प्रदूषण (Plastic Free Movement) से बचाने का योगदान भी हो रहा है।

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प्रशासन का सहयोग और बड़ा बदलाव

नगर पंचायत कुसमी के मुख्य नगरपालिका अधिकारी अरविंद विश्वकर्मा ने वूमन ट्री योजना के तहत समूहों को प्रेरित किया कि वे पौधारोपण के साथ (Eco Friendly Plates) दोना-पत्तल (Green Entrepreneurship) बनाने का काम भी करें। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व करूण डहरिया ने भी नागरिकों और आयोजकों से अपील की कि त्योहारों में केवल महिला समूहों द्वारा बनाए गए पत्तलों का उपयोग करें।

यह पहल साबित करती है कि बदलाव के लिए हमेशा बड़े संसाधन नहीं, बल्कि छोटे प्रयास भी पर्याप्त होते हैं। सरई पत्तों से बने दोना-पत्तल अब केवल पर्यावरण अनुकूल विकल्प नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, स्वच्छता और सामाजिक जागरूकता (Women Empowerment) का प्रतीक बन चुके हैं।

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