Friday, November 22, 2024
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वन मंत्री जी! इस जिले के डीएफओ व रेंजर पर इतनी मेहरबानी क्यों? पैसे लेकर बेच रहे आरक्षित वन भूमि, फिर भी कार्रवाई नहीं

रायगढ़। शहर के कोरियाददार व सारंगढ़ के कमला नगर के बाद अब यहां पहाड़ मंदिर से लगे वन भूमि में धड़ल्ले के साथ बेजा कब्जा और अवैध निर्माण का खेल हो रहा है। अतिक्रमण का दौर आज-कल का नहीं बल्कि लंबे समय से चल रहा है। खासबात यह है कि रेंज के अधिकारियों को भी इसकी पूरी जानकारी है मगर कार्रवाई करने की बजाए जिम्मेदार अधिकारी वसूली का खेल खेलकर अतिक्रमण को और बढ़ावा दे रहे हैं। जिला मुख्यालय में अब तक सरकारी जमीन में कब्जा व निर्माण की बात सामने आते रहती हैं मगर इस बार एक गंभीर मामला सामने आया है। यहां सरकारी जमीन के साथ अब वन भूमि में भी अतिक्रमण का दौर शुरु हो गया है। यह सब सुदूर वनांचल में नहीं बल्कि शहर से लगे इलाके में हो रहा है और भी वन विभाग के अधिकारियों के आंखों के सामने मगर विडंबना यह है कि सबकुछ देखने व जानने के बाद भी विभाग कार्रवाई करने की बेजा कब्जा मामले को और भी बढ़ावा देता नजर आ रहा है। रायगढ़ वनमंडल में यूं भी तेजी के साथ वनों का घनत्व कम होता जा रहा है। वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की लापरवाही का ही नतीजा है कि फारेस्ट की जमीन पर रातों रात बस्तियां आबाद हो जाती हैं और अधिकारी मूक दर्शक बने रहते हैं। सारंगढ़ में वनभूमि बसा कमला नगर और जिला मुख्यालय में ही फारेस्ट की जमीन पर आबाद कोरियाददार इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जिसे कब्जा मुक्त कराना विभाग के लिए अब एक टेढ़ी खीर बन चुका हैं। इसके बावजूद विभागीय अधिकारी व कर्मचारियों की लापरवाही थमने का नाम नहीं ले रही है। इसी का नतीजा है कि कोरियाददार में एक महिला वन कर्मी को अवैध निर्माण की छूट देने के बाद गजमार पहाड़ में वनभूमि में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण होने लगा है और फॉरेस्ट की जमीन पर मकान खड़े हो गए हैं।

 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अवमानना कर रहे रायगढ़ डीएफओ : रायगढ़ डीएफओ व रायगढ़ रेंज के रेंजर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सीधे सीधे अवमानना कर रहे हैं। दरअसल, देश के सर्वोच्च न्यायलय का आदेश है कि रिजर्व फारेस्ट एरिया में अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है। इसके बाद भी रायगढ़ में धड़ल्ले से अतिक्रमण जारी है। अतिक्रमणकारियों से पैसे लेकर विभाग के अधिकारी वन भूमि को धड़ल्ले से बेच रहे हैं।वनाधिकारियों द्वारा मौका देखकर एक भी पीओआर नहीं करना इन आरोपों की पुष्टि कर रहा है। रिजर्व फारेस्ट में अतिक्रमण कक्ष क्र.926 रेगड़ा, 967 बोईरदादर और 886 पंचधारी ये तीनों बीट रायगढ़ सर्किल में है। मतलब जिला मुख्यालय से चंद कदमों की दूरी पर स्थित होेने के बाद भी अफसर आंख मूंद कर तमाशा देख रहे।

 

रायगढ़ वन विभाग के अफसरों को इतनी मेहरमानी क्यों : बता दें कि लॉकडाउन में वनमण्डल स्थित रेस्टहाउस में चक्रधर पुलिस ने छापामार कर कुछ लोगों को जुआ खेलते हुए पकड़ा था। आज तक इस मामले में रायगढ़ डीएफओ जिम्मेदार प.सहायक रायगढ़ एवं बीट गार्ड के ऊपर कार्यवाही नहीं कर सकें। यही नहीं, पूरे जिले में अवैध शिकार का मामला भी सामने आया है। इसके अलावा सारंगढ़ में एक बीट गार्ड पर पुलिस आरक्षकों के साथ मिलकर अवैध वसूली का आरोप लगा था। इसके खिलाफ भी डीएफओ कार्यवाही नहीं कर सकें। वहीं प्रदेश के वन मंत्री मोहम्मद अकबर भी रायगढ़ डीएफओ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान नजर आ रहे।

अधिकारी गये, देखे और चले गए… यहां यह बताना जरूरी होगा कि गजमार पहाड़ में अतिक्रमण की जानकारी होने की सूचना मिलने पर लॉकडाउन से पहले रेंज के अधिकारी बाकायदा मौके पर पहुंचे थे। उन्होंने खुद वनभूमि पर हो रहे अतिक्रमण व अवैध निर्माण को अपनी आंखों से देखा, बेजा कब्जा करने वालों से पूछताछ भी की मगर बिना कुछ कार्रवाई किये ही वहां से चले गए। यही कारण है कि इसके बाद यहां अतिक्रमण करने वालों के हौसले बढ़ गए हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि अधिकारी कुछ कार्रवाई करने वाले नहीं हैं।

कार्रवाई के नाम पर अवैध वसूली : वनभूमि में हो रहे अवैध निर्माण का जायजा लेने के बाद रेंज के अधिकारी तो दोबारा वहां नहीं पहुंचे मगर उसके बाद कार्रवाई के नाम पर वहां अवैध वसूली का खेल शुरू हो गया हैं। अतिक्रमण करने वाले खुद स्वीकार करते हैं कि कार्रवाई से बचने के किये उनसे 20-20 हजार रुपये लिए गए हैं। इसमें सर्किल प्रभारी का नाम सामने आ रहा है।

क्या कहते हैं समिति अध्यक्ष  
अधिकारियों को मैं कई बार जानकारी दे चुका हूं। कोई भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। उन्हीं के कारण गर्मी में पूरे पहाड़ में आग लगी, हरियाली जल गयी व जानवर मर गये। अब यह पूरा क्षेत्र अतिक्रमण से घिर रहा है।
यादराम पटेल अध्यक्ष वन प्रबंधन समिति माझापारा