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मरवाही विधान सभा चुनाव कांग्रेस के लिए जीतना प्रतिष्ठा का सवाल है, हार जाने से उसकी सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ेगा!

रायपुर। मरवाही विधान सभा का चुनाव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह के बीच का हो गया है। जोगी परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ता तो यहाँ भावनात्मक लहर होती। छजका के उम्मीदवारों का नामांकन रद्द होने के पीछे कई सियासी कारण हो सकते हैं। छजका का चुनावी समर से अलग होने पर ,कांग्रेसी खुश हुए। लेकिन छजका का बीजेपी को समर्थन करने से सियासी तस्वीर बदल गई है। इस सियासी खेल से यहाँ कुछ भी हो सकता है। मरवाही विधान सभा चुनाव कांग्रेस के लिए जीतना प्रतिष्ठा का सवाल है। हार जाने से उसकी सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन यह चुनाव तय करेगा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्य में कितना लोकप्रिय हैं। कांग्रेस यदि यह चुनाव दो ,तीन हजार से जीतती है, तो यही माना जायेगा कि पूरी प्रशासनिक मशीनरी और सरकार खड़ी रहने के बाद भी ,कोई खास चमात्कार कांग्रेस नहीं कर पाई। यानी कांग्रेस को राज्य में और मेहनत की जरूरत है,अगले चुनाव के लिए। जैसा कि विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा ने कांग्रेस को समर्थन देने का एलान किया है। उनके कांग्रेस में जानेे की अटकलें पहले से ही थी। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि, भूपेश राज्य में जबरिया दो उपचुनाव की स्थिति की तोहमत लेंगे।

ये कैसा आरोप…
उपचुनाव में अक्सर आरोप लगते हैं। इससे चुनाव को कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसा कि कांग्रेस का कहना है कि छजका और बीजेपी के बीच दस करोड़ की डील हुई है। तो क्या यह मान लिया जाए कि कांग्रेस ने दस करोड़ रूपये ही मरवाही विधान सभा में खर्च किये हैं,इसलिए उसने दस करोड़ रूपये की बात कही। क्या कांग्रेस अपना खर्च बता रही है? बीस करोड़ रूपये क्यों नहीं कही? सवाल यह भी है कि चुनाव से पहले गांँव गाँव में महिला मतदाताओं को साड़ियाँ कौन बांट रहा था? कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए। राजनीतिक आदिवासी या फिर नकली आदिवासी की बात कांग्रेस करती है,जबकि अजीत जोगी ही प्रथम मुख्यमंत्री थे कांग्रेस के। नकली आदिवासी थे, तो उन्हें मुख्यमंत्री क्यों बनाया? बनाया तो कांग्रेस ने विरोध क्यों दर्ज नहीं की हाई कमान के पास। खैर। राजनीति बगैर आरोप और प्रत्यारोप के नहीं चलती।

जोगी बिन चुनाव…
बीजेपी और कांग्रेस दोनों आखिरी ओवर में कौन सा शाॅट मारते हैं,जिससे मतदाता झूम कर थोक में वोट करता है,यह शाम तक पता चल जाएगा। मरवाही विधान सभा पर जोगी परिवार का कब्जा हमेशा से रहा। पहली बार प्रदेश में चुनाव, जोगी बिन हो रहा है। अजीत जोगी का पोस्टर विधान सभा में फाड़े गये हैं। यहाँ के मतदाताओं को यदि लगता है कि अजीत जोगी का अपमान किया गया है। अजीत जोगी ही उनके सब कुछ थे, और हैं। ऐसी स्थिति में रेणू जोगी की अपील का असर हवा बदल सकती है। वैसे भी बीजेपी ,अजीत जोगी के समय हमेशा दूसरे नम्बर पर रही है। छजका के कई लोगों को तोड़कर कांग्रेस अपनी पार्टी में शामिल की है। सत्ता जिस पार्टी की रहती है,ऐसा हमेशा होता है। उपचुनाव के परिणाम ज्यादातर सत्ता के पक्ष में जाते हैं। लेकिन यहाँ स्थिति बदली हुई है। इसलिए कुछ भी हो सकता है।

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