

खेल डेस्क। सिर्फ साढ़े 6 महीने में दो लोगों की सोच और अंदाज ने एक पूरी क्रिकेट, एक पूरे देश और क्रिकेट को पसंद करने वाले दुनिया के हर हिस्से को रोमांचित कर दिया है. इतने कम समय में क्रिकेट पर इतना बड़ा और इतना जबरदस्त असर पिछले कुछ दशकों में तो शायद ही किसी ने डाला हो. बेन स्टोक्स और ब्रैंडन मैक्कलम इस बदलाव के अगुवा हैं, जिन्होंने इंग्लैंड की टेस्ट टीम में क्रांतिकारी बदलाव कर दिया है. सिर्फ खेलने के तरीके से ही नहीं, बल्कि नतीजों से भी. पाकिस्तान में मिली टेस्ट सीरीज जीत इस छोटी लेकिन असरदार कहानी का सबसे ताजा अध्याय है. मुल्तान टेस्ट में आज सोमवार 12 दिसंबर को पाकिस्तान को जीत से सिर्फ 26 रन पहले रोक कर बेन स्टोक्स की टीम ने लगातार दूसरा मैच जीत लिया. 17 साल के बाद पाकिस्तान पहुंची इंग्लिश टीम ने न सिर्फ पाकिस्तान जाने के कई सालों के इंतजार को खत्म किया, बल्कि उसकी जमीन पर 22 साल बाद पहली टेस्ट सीरीज भी जीती. इसका सारा श्रेय स्टोक्स और मैक्कलम को जाता है, जिन्होंने एक साल में सिर्फ एक टेस्ट जीतने वाली टीम को ‘विनिंग मशीनÓ में बदल दिया है.
जून में शुरू हुई क्रांति : जो रूट के बाद जून में इंग्लैंड की कमान संभालने वाले बेन स्टोक्स और नए कोच बनाए गए मैक्कलम ने इंग्लिश टीम में नई ऊर्जा भरने की कोशिश की और इसका मंत्र था- बेखौफ और बेबाक क्रिकेट. इसकी शुरुआत न्यूजीलैंड को अपनी जमीन में 3-0 से हराकर हुई, जहां से टेस्ट में वनडे और टी20 के अंदाज में बल्लेबाजी शुरू हुई. फि र उस भारतीय टीम को इकलौते टेस्ट में हराया, जिसके खिलाफ पिछले साल वह अपने मैदानों में मार खा रही थी. साउथ अफ ्रीका ने एक झटका दिया, तो लगा कि ‘बैजबॉलÓ का बुलबुला फ ूट गया है, लेकिन अगले दो मैचों में इस टीम ने साउथ अफ्रीका को उखाड़ फेंका.
पाकिस्तान में दिखा असली ‘बैजबॉल : फि र भी ये सब अपने घर में था और उसका सबसे बड़ा टेस्ट पाकिस्तान में होना था, जहां इस टीम में सिर्फ जेम्स एंडरसन को छोड़कर किसी भी अन्य क्रिकेटर ने कभी टेस्ट क्रिकेट का स्वाद नहीं चखा था. जिसे सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा था, वहीं स्टोक्स-मैक्कलम के ‘बैजबॉल ब्रांड क्रिकेट का सबसे बड़ा उदाहरण मिला. ये रावलपिंडी टेस्ट के पहले दिन 504 रन बनाने का रिकॉर्ड नहीं था, न ही चार बल्लेबाजों के आतिशी शतक थे. ये प्रमाण मिला मैच के चौथे दिन, जब इंग्लैंड ने अपनी नतीजा हासिल करने की कोशिश में हार की संभावना के बावजूद दूसरी पारी घोषित करते हुए पाकिस्तान के सामने जीत के लिए 343 रनों लक्ष्य रखा था, जबकि 100 ओवर का खेल बाकी था और पिंडी स्टेडियम की पिच उतनी ही सपाट थी, जितनी पहले दिन. इसके बावजूद 40 की उम्र में जेम्स एंडरसन जैसे दिग्गज के नेतृत्व ने उस सपाट पिच पर इंग्लैंड के गेंदबाजों ने पाकिस्तान को 74 रनों के अच्छे-खासे अंतर से हराते हुए 22 साल बाद पाकिस्तान में पहली जीत दर्ज की.अब मुल्तान में 26 रन की जीत के साथ इंग्लैंड ने एक बार फि र ज्यादा बड़ा लक्ष्य न होने के बावजूद पाकिस्तान को हराते हुए टेस्ट मैच के साथ सीरीज भी जीत ली. अपने पिछले पाकिस्तान दौरे में उसे 0-2 से हार का सामना करना पड़ा था और अब उसके पास क्लीन स्वीप का मौका है.
आंकड़े भी हैं प्रमाण : अगर आंकड़ों के खेल से मैक्कलम-स्टोक्स के असर को समझना है, तो उसके भी पर्याप्त सबूत हैं. पहला तो यही है कि इंग्लैंड ने 61 साल पहले पाकिस्तान का पहली बार दौरा किया था. तब से लेकर 2005 के पिछले दौरे तक उसने पाकिस्तान में सिर्फ 2 टेस्ट मैच जीते थे. अब दो मैच उसने एक सीरीज में ही अपने नाम कर लिए हैं. ये अपने आप में बड़ी उपलब्धि है. दूसरा प्रमाण सबसे अहम और सबसे जोरदार है. जून में स्टोक्स-मैक्कलम के कमान संभालने से पहले बीते एक साल में जो रूट और क्रिस सिल्वरवुड (तत्कालीन कोच) की जोड़ी के कार्यकाल में इंग्लैंड ने 12 टेस्ट खेले थे, जिसमें उसने सिर्फ 1 जीता था, जबकि 7 टेस्ट गंवाए थे और 4 ड्रॉ रहे थे. इसके विपरीत जून से लेकर मुल्तान टेस्ट तक इंग्लैंड ने 9 टेस्ट खेले हैं, जिसमें उन्होंने 8 जीत दर्ज की हैं और सिर्फ एक हार मिली है. कोई भी ड्रॉ नहीं. यानी अब बातें सिर्फ जीत या हार से होंगी, ड्रॉ से नहीं.